Friday, December 8, 2017

बुजुर्ग की खुदद्ारी

बुजुर्ग की खुदद्ारी
मैं रोज की तरह अपने आॅफिस से घर की ओर लौट रहा था और पता नहीं आज कैसे उस बुजुर्ग पर मेरी नजर पड़ गई जब की पीछले छः सालों से रोज उसी रास्ते से मेरा आना जाना था कभी मेरा ध्यान उस बुजुर्ग पर नहीं गया मगर पता नहीं आज कैसे मेरे पैर घर की ओर जाते हुए भी रूक से गये और मैं ऐसे ही उस बुजुर्ग की तरफ जाने लगा जो रोड के किनारे एक बोरी पर नीबू, हरा धनिया और हरि मिर्च बेच रहे थे। रामजान का महीना चल रहा था और चैथा रोजा मुकम्मल होने की कागार पर था यानि असर की नमाज हो चुकी थी जो में स्टेशन के पास वाली मस्जिद में पढ कर आता था। मैं बुजर्ग के पास गया और नीबू, हरा धनिया और हरि मिर्च के पाव मालूम करने लगा।
मैं - अब्बा कैसे दिये है नीबू, हरा धनिया और हरि मिर्च।
बुजुर्ग - बेटा नीबू 15 रूपये पाव, हरि मिर्च 10 पाव और हरा धनिए की गडड्ी 5 रूपये की।
(मगर बुजुर्ग अब्बा की आवाज कांप रही थी फिर भी एक अजीब सी कशिश थी जो मेरे दिल को होते हुए मेरे अन्दर के वूजूद को झंझोड़ रही थी।)
मैं - अब्बा नीबू और हरि मिर्च एक एक पाव और हरा धनिए की एक गड्डी दे दो।
बुजर्ग - बुजुर्ग अब्बा अपने कांपते हाथों से बांट और तराजू जो बहुत पूरानी थी से तोलने लगे और मैं पैसे देकर आगे बढ़ने लगा मगर ना जाने क्यूं वहां से उठने के बाद मुझे ऐसा लगा के मेरे अन्दर कुछ कमी सी है। मैं फिर से वापस आया और न जाने क्यूं मेने बुजुर्ग अब्बा के हाथ को पकड़ा। हाथ को पकड़ते ही मुझे ऐसा लगा की मेरे अन्दर से मेरी रूह नकलने वाली थी क्योंकि उनका शरीर बहुत तेज गर्म था शायद उनको बहुत तेज बुखार था।
मैं - अब्बा आपको तो बुखार है वो भी बहुत तेज, आप आओ मेरे साथ मैं आपको दवा दिला देता हूं और घर पर आराम करो।
बुजुर्ग - (मगर जो बात बुजुर्ग अब्बा ने कही उसको सुनकर मेरी आंखे भर आई) बेटा अगर घर पर आराम करूंगा तो इस बुढ़ापे को कैसे काटूगा। अभी सामान बचा है जब तक सब बिक नहीं जायेगा तब तक मैं घर नहीं जा सकाता मगर ऐसा आज तक नहीं हुआ है कि मेरा सारा सामान एक दिन में बिक गया हो।
मैं - मैंने कहा अब्बा एक काम करो आप अपना सारा सामान तोल दो मैं आज आपका सारा सामान खरीदता हूं मगर मेरी एक शर्त है।
बुजुर्ग - (थोड़ा मुस्कुराते हुए) क्या शर्त है बेटा।
मैं - आपको मेरे साथ डाॅक्टर के चलना होगा मैं आपको दवा दिलाकर अपके घर छोडूगा और आज आपके घर ही इफतारी करूगां।
बुजुर्ग - थोड़ा हस कर बोले - ठीक है।
मै- मैंने सारा सामाान लिया और उनकी बोरी को उठाया और उनको डाॅक्टर के पास लेजाकर दवा दिलवाई और फिर उनके घर की ओर रवाना होने लगे।
घर पहुंचा तो एक बहुत बुढ़ी अम्मा अन्दर से ही कहने लगी आज फिर आप जल्दी आ गये इफतार और फिर सहरी कहा से आऐगी यह सुनकर मेरे आंखों से आंसू आने लगे और मैं अपने आपको बहुत ही लाचार और कमजोर महसूस कर रहा था। फिर भी मैं हिम्मत करके बोला अम्मा आज अब्बा का सामारा सामान बिक गया अब आपको फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
मैं अपने साथ कुछ इफतारी का सामान भी ले गया था वो मैंने अम्मा को दिया मगर वो अम्मा इफतारी का सामान लेते हुए थोड़ा झिझक रहीं थी तो मैने कहा मैं आज यहीं आप लोगों के साथ इफतार करूंगा फिर भी अम्मा ने अब्बा की तरफ देखा तो अब्बा ने थोडी से गर्दन हां के इशारे में हिलाई फिर अम्मा ने थोड़ा मुस्कुराते हुए मुझसे इफतारी का सामान लिया और अब्बा को मैंने एक चारपाई बिछाकर लिटाया और फिर हमने साथ में इफतारी की। वहां से लौटते वक्त मैरे मन में बहुत से सवाल थे मगर मैं कर भी क्या सकता था।
फिर भी मैंने कुछ पैसे और देने की सोची और जैसे ही मैने कुछ पैसे अब्बा के हाथ पर रखे उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा हम आपके जज्बात की कदर करते हैं मगर मेरी खुदद्ारी इसकी इजाजत नहीं देती हम ये पेसे नहीं रख सकते। मैंने बहुत कहा मगर उन्होने पैसे नहीं लिये।
इतने में मुझे किसी ने झांझोडा और खुर्शीद खुर्शीद की आवाज आई जैसे मेरी आंख खुली मैं अपने घर की चारपाई पे सोया हुआ था और मेरे वालिद मोहतरम मुझे फजर की नमाज के लिये जगा रहे थे। मैं जैसे बहुत गहरी नींद से जागा। मगर इस ख्वाब ने मेरी जिन्दगी का एक नया सबक सिखाया।
अब मैं हर कोशिश यह करता हूं की अपनी जरूरत का हर सामान इस तरह के बुजुर्गों से ही खरीदूं क्योंकि ये लोग अपने बिजनेस को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिये मेहनत नहीं करते बल्कि 2 वक्त की रोटी की जदद्ोजहाद में मेहनत करते है।
मैं आप सब से भी यहीं गुजारीश करता हूं कि बड़े बड़े शोरूमों की बजाये इस तरह के बुजुर्ग लोगों से जरूर खरीदारी करें।
अगर इस छोटी सी कहानी को लिखने में कोई गलती हो गई हो तो मैं खुशीद अ0 सैफी आपसे मांफी का तलबगार हूं।

शुक्रिया...

लेखक - Khursheed A. Saifi

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