ये कैसी अधुनिकता है!
बहुत दिनों बाद मैंने सोनू को देखा था मगर आज ना जाने क्यूं वो बहुत खुश दिखाई देने की नाकाम कोशिश कर रहा था मगर जब मैं उसके पास पहुंचा तो देखा उसकी आंखों में एक उदासी थी और उसके चेहरे पर भी कोई सुकून दिखाई नहीं दे रहा था मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह माजरा किया है फिर मैंने हिम्मत करके सोनू से पूछ ही लिया।
मैं - भाई आज बहुत खुश लग रहे हो सब खेरियत तो है।
सोनू - हां भाई सब ठीक है। (मगर उसके लहजे में एक उदासी थी)
मैं - चलो ठीक है भाई, मगर यार एक बात कहूं तू मुझसे लाख छुपाले मगर नहीं झूपा सकता है अब सच सच बोल यार, बात क्या हैं इस बेकार की खुशी और उदासी की वजह क्या हैं।
सोनू - कुछ नहीं यार, सब ठीक है।
मैं - तेरी ये आदत नहीं जायेगी अच्छा आ चाय पिलाता हूं। मैं सोनू को साथ लेकर पास ही चाय की दुकान पर बैठ गया।
मैं - बाबा, दो चाय बना दो बड़िया सी !.... ‘हां भाई अब बोल भी दे क्या बात है जो इतना परेशान है’
इससे पहले सोनू कुछ बोतला उसकी आंखें भरसी आईं, मेरा दिल एक दम लर्ज गया उसके आंसू मेरे वजूद को झंझोड़ गये मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने आप को थोड़ा संभालकर कहां - सोनू मेरे भाई इस तरह दिल छोटा करने से कुछ नहीं होगा। अब बता भाई बात क्या है।
सोनू- भाई मेरा एक दोस्त है दोस्त क्या है मेरी कम्पनी का मालिका है यार वो अपनी मां को वृद्धा आश्रम में दाखिल कर आये हैं।
मैं - क्यों भाई!
सोनू- क्योंकि उसकी पत्नी को उनकी मां से प्रोब्लम होती थी यार कोई ऐसा कैसे कर सकता है (सोनू रोते हुए और फिर अपने आपको सम्भालकर बोला) यार ये कैसी अधुनिकता है जहां हम अपनी जननी को ही छोटी सी परेशानी के लिए पैसों के बल पर कहीं भी छोड़ आते हैं। अच्छा है भाई खुर्शीद हमें ऊपर वाले ने इस आधुनिकता से दूर ही रखा है।
मैं - आज मैं अपने आपको बहुत कमजोर व मजबूर सा महसूस कर रहा था।
‘‘पता नही हम ये कौन सी जददोजहद में लगे है कि अपने बेशकीमती रिश्तों को पैसे कमाने और पैसों के बल पर खत्म करते जा रहे हैं। मेरी समझ में एक बात नहीं आती है कि हम इस दुनिया में खाली हाथ आये थे और जायेंगे भी खाली हाथ फिर ये पैसों के लिए इतने पत्थर दिल कैसे हो जाते हैं। अल्लाह हम सबको अपने वालिदेन की खिदमत करने वाला और हमेशा उनके साये में रहने वाला बना दें।’’
अपनी राय जरूर दे, कोई कमी या गलती हो गई हो तो उसके लिए आप सबसे मांफी चाहता हूं ।
बहुत दिनों बाद मैंने सोनू को देखा था मगर आज ना जाने क्यूं वो बहुत खुश दिखाई देने की नाकाम कोशिश कर रहा था मगर जब मैं उसके पास पहुंचा तो देखा उसकी आंखों में एक उदासी थी और उसके चेहरे पर भी कोई सुकून दिखाई नहीं दे रहा था मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह माजरा किया है फिर मैंने हिम्मत करके सोनू से पूछ ही लिया।
मैं - भाई आज बहुत खुश लग रहे हो सब खेरियत तो है।
सोनू - हां भाई सब ठीक है। (मगर उसके लहजे में एक उदासी थी)
मैं - चलो ठीक है भाई, मगर यार एक बात कहूं तू मुझसे लाख छुपाले मगर नहीं झूपा सकता है अब सच सच बोल यार, बात क्या हैं इस बेकार की खुशी और उदासी की वजह क्या हैं।
सोनू - कुछ नहीं यार, सब ठीक है।
मैं - तेरी ये आदत नहीं जायेगी अच्छा आ चाय पिलाता हूं। मैं सोनू को साथ लेकर पास ही चाय की दुकान पर बैठ गया।
मैं - बाबा, दो चाय बना दो बड़िया सी !.... ‘हां भाई अब बोल भी दे क्या बात है जो इतना परेशान है’
इससे पहले सोनू कुछ बोतला उसकी आंखें भरसी आईं, मेरा दिल एक दम लर्ज गया उसके आंसू मेरे वजूद को झंझोड़ गये मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने आप को थोड़ा संभालकर कहां - सोनू मेरे भाई इस तरह दिल छोटा करने से कुछ नहीं होगा। अब बता भाई बात क्या है।
सोनू- भाई मेरा एक दोस्त है दोस्त क्या है मेरी कम्पनी का मालिका है यार वो अपनी मां को वृद्धा आश्रम में दाखिल कर आये हैं।
मैं - क्यों भाई!
सोनू- क्योंकि उसकी पत्नी को उनकी मां से प्रोब्लम होती थी यार कोई ऐसा कैसे कर सकता है (सोनू रोते हुए और फिर अपने आपको सम्भालकर बोला) यार ये कैसी अधुनिकता है जहां हम अपनी जननी को ही छोटी सी परेशानी के लिए पैसों के बल पर कहीं भी छोड़ आते हैं। अच्छा है भाई खुर्शीद हमें ऊपर वाले ने इस आधुनिकता से दूर ही रखा है।
मैं - आज मैं अपने आपको बहुत कमजोर व मजबूर सा महसूस कर रहा था।
‘‘पता नही हम ये कौन सी जददोजहद में लगे है कि अपने बेशकीमती रिश्तों को पैसे कमाने और पैसों के बल पर खत्म करते जा रहे हैं। मेरी समझ में एक बात नहीं आती है कि हम इस दुनिया में खाली हाथ आये थे और जायेंगे भी खाली हाथ फिर ये पैसों के लिए इतने पत्थर दिल कैसे हो जाते हैं। अल्लाह हम सबको अपने वालिदेन की खिदमत करने वाला और हमेशा उनके साये में रहने वाला बना दें।’’
अपनी राय जरूर दे, कोई कमी या गलती हो गई हो तो उसके लिए आप सबसे मांफी चाहता हूं ।
शुक्रिया...
लेखक - Khursheed A. Saifi