Thursday, September 20, 2018

बलात्कार Vs तीन तलाक

बलात्कार शब्द का अर्थ : पुल्लिंग, 1. ज़बरदस्ती करना।
2. बल-प्रयोग।
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१. अब बात करते हे तलाक के कानून की जो की लागु हो चूका हे
तीन तलाक अध्यादेश पर राष्ट्रपति कोविंद की मुहर, 3 साल की सजा का प्रावधान
२. बलात्कार पर सख्त कानून कब बनेगा ?
क्या पहले तलाक पर कानून ज्यादा जरूरी था या बलात्कार पर.....
अगर बात में अपने जिला बुलंदशहर की करू तो यहाँ आजकल शबनम उर्फ़ रानी का तलक व हलाला का मामला बहुत प्रकाश में हे और १९ सितम्बर को उनसे मिलने राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती विमला बौतम जी आई,
बहुत अच्छी बात है मगर मेरा दिमाग यहाँ ख़राब होता हे कि पिछले १५ दिनों में अगोता थाना क्षेत्र के साथ साथ अलग अलग क्षेत्रो में मासूम करीब पांच से सात नाबालिग बच्चियों के साथ दरिंदगी की गई,
जिले की पुलिस को सलाम तमाम अपराधियों को पकड़ा भी जा चूका है मगर सवाल ये हे की उन मासूम नाबालिग बच्चियों का कोई क्यों हाल नही पूछता क्या वो पीड़ा में नही हे, क्या उनको इंसाफ की दरकार नही हे. उनका जीवन शुरू होने से पहले ही बर्बाद कर दिया गया.
मैं एक अख़बार में कंप्यूटर ओपरेटर हूँ और जिस दिन ऐसी कोई घटना होती है और मैं न्यूज़ को टाइप करता हु सच बता रहा हूँ उस रात मुझे नींद नही आती है और अपने अपने वुजूद को न होने के बराबर महसूस करता हूँ
अब बात करता हूँ कुछ बलात्कार से सम्बंधित बातो पर -
१. लडकियों के पहनावे से बलात्कार की घटनाये होती हे ?
मैं उन कम अक्ल लोगो से ये जानना चाहता हु की चार या पांच साल की मासूम बच्ची क्या पहने जिससे वो अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके
२. लडकियों को ज्यादा छूट नही देनी चाहिए ?
लडकियों और लडको के लिये कोई अलग सविधान है, जो उनको बहार जाने से रोका जाये या उन पर हर वक्त पहरा दिया जाये,
पहनावा और दीगर कोई भी वजह बलात्कार को बढावा नही दे रही हे सिवाए सख्त कानून न होना.
बहरहाल बलात्कार पर भी एक ऐसा सख्त से सख्त कानून बनाया जाये जिससे कोई भी ऐसी हरकत करने से पहले १०० बार सोचे.
इन तमाम बातो को लेकर बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ लेकिन अभी वक़्त की कमी के चलते नही लिख पा रहा हूँ मगर जल्द ही अपने फेसबुक पेज पर और अपने ब्लॉग पर इस बाबत एक सम्पूर्ण लेख लिखने वाला हूँ.
शुक्रिया अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दे .....

Saturday, December 9, 2017

ये कैसी अधुनिकता है!

ये कैसी अधुनिकता है! 

बहुत दिनों बाद मैंने सोनू को देखा था मगर आज ना जाने क्यूं वो बहुत खुश दिखाई देने की नाकाम कोशिश कर रहा था मगर जब मैं उसके पास पहुंचा तो देखा उसकी आंखों में एक उदासी थी और उसके चेहरे पर भी कोई सुकून दिखाई नहीं दे रहा था मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह माजरा किया है फिर मैंने हिम्मत करके सोनू से पूछ ही लिया।
मैं - भाई आज बहुत खुश लग रहे हो सब खेरियत तो है।
सोनू - हां भाई सब ठीक है। (मगर उसके लहजे में एक उदासी थी)
मैं - चलो ठीक है भाई, मगर यार एक बात कहूं तू मुझसे लाख छुपाले मगर नहीं झूपा सकता है अब सच सच बोल यार, बात क्या हैं इस बेकार की खुशी और उदासी की वजह क्या हैं।
सोनू - कुछ नहीं यार, सब ठीक है।
मैं - तेरी ये आदत नहीं जायेगी अच्छा आ चाय पिलाता हूं। मैं सोनू को साथ लेकर पास ही चाय की दुकान पर बैठ गया।
मैं - बाबा, दो चाय बना दो बड़िया सी !.... ‘हां भाई अब बोल भी दे क्या बात है जो इतना परेशान है’
इससे पहले सोनू कुछ बोतला उसकी आंखें भरसी आईं, मेरा दिल एक दम लर्ज गया उसके आंसू मेरे वजूद को झंझोड़ गये मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने आप को थोड़ा संभालकर कहां - सोनू मेरे भाई इस तरह दिल छोटा करने से कुछ नहीं होगा। अब बता भाई बात क्या है।
सोनू- भाई मेरा एक दोस्त है दोस्त क्या है मेरी कम्पनी का मालिका है यार वो अपनी मां को वृद्धा आश्रम में दाखिल कर आये हैं।
मैं - क्यों भाई!
सोनू- क्योंकि उसकी पत्नी को उनकी मां से प्रोब्लम होती थी यार कोई ऐसा कैसे कर सकता है (सोनू रोते हुए और फिर अपने आपको सम्भालकर बोला) यार ये कैसी अधुनिकता है जहां हम अपनी जननी को ही छोटी सी परेशानी के लिए पैसों के बल पर कहीं भी छोड़ आते हैं। अच्छा है भाई खुर्शीद हमें ऊपर वाले ने इस आधुनिकता से दूर ही रखा है।
मैं - आज मैं अपने आपको बहुत कमजोर व मजबूर सा महसूस कर रहा था।

‘‘पता नही हम ये कौन सी जददोजहद में लगे है कि अपने बेशकीमती रिश्तों को पैसे कमाने और पैसों के बल पर खत्म करते जा रहे हैं। मेरी समझ में एक बात नहीं आती है कि हम इस दुनिया में खाली हाथ आये थे और जायेंगे भी खाली हाथ फिर ये पैसों के लिए इतने पत्थर दिल कैसे हो जाते हैं। अल्लाह हम सबको अपने वालिदेन की खिदमत करने वाला और हमेशा उनके साये में रहने वाला बना दें।’’

अपनी राय जरूर दे, कोई कमी या गलती हो गई हो तो उसके लिए आप सबसे मांफी चाहता हूं ।

शुक्रिया...

लेखक - Khursheed A. Saifi

Friday, December 8, 2017

बुजुर्ग की खुदद्ारी

बुजुर्ग की खुदद्ारी
मैं रोज की तरह अपने आॅफिस से घर की ओर लौट रहा था और पता नहीं आज कैसे उस बुजुर्ग पर मेरी नजर पड़ गई जब की पीछले छः सालों से रोज उसी रास्ते से मेरा आना जाना था कभी मेरा ध्यान उस बुजुर्ग पर नहीं गया मगर पता नहीं आज कैसे मेरे पैर घर की ओर जाते हुए भी रूक से गये और मैं ऐसे ही उस बुजुर्ग की तरफ जाने लगा जो रोड के किनारे एक बोरी पर नीबू, हरा धनिया और हरि मिर्च बेच रहे थे। रामजान का महीना चल रहा था और चैथा रोजा मुकम्मल होने की कागार पर था यानि असर की नमाज हो चुकी थी जो में स्टेशन के पास वाली मस्जिद में पढ कर आता था। मैं बुजर्ग के पास गया और नीबू, हरा धनिया और हरि मिर्च के पाव मालूम करने लगा।
मैं - अब्बा कैसे दिये है नीबू, हरा धनिया और हरि मिर्च।
बुजुर्ग - बेटा नीबू 15 रूपये पाव, हरि मिर्च 10 पाव और हरा धनिए की गडड्ी 5 रूपये की।
(मगर बुजुर्ग अब्बा की आवाज कांप रही थी फिर भी एक अजीब सी कशिश थी जो मेरे दिल को होते हुए मेरे अन्दर के वूजूद को झंझोड़ रही थी।)
मैं - अब्बा नीबू और हरि मिर्च एक एक पाव और हरा धनिए की एक गड्डी दे दो।
बुजर्ग - बुजुर्ग अब्बा अपने कांपते हाथों से बांट और तराजू जो बहुत पूरानी थी से तोलने लगे और मैं पैसे देकर आगे बढ़ने लगा मगर ना जाने क्यूं वहां से उठने के बाद मुझे ऐसा लगा के मेरे अन्दर कुछ कमी सी है। मैं फिर से वापस आया और न जाने क्यूं मेने बुजुर्ग अब्बा के हाथ को पकड़ा। हाथ को पकड़ते ही मुझे ऐसा लगा की मेरे अन्दर से मेरी रूह नकलने वाली थी क्योंकि उनका शरीर बहुत तेज गर्म था शायद उनको बहुत तेज बुखार था।
मैं - अब्बा आपको तो बुखार है वो भी बहुत तेज, आप आओ मेरे साथ मैं आपको दवा दिला देता हूं और घर पर आराम करो।
बुजुर्ग - (मगर जो बात बुजुर्ग अब्बा ने कही उसको सुनकर मेरी आंखे भर आई) बेटा अगर घर पर आराम करूंगा तो इस बुढ़ापे को कैसे काटूगा। अभी सामान बचा है जब तक सब बिक नहीं जायेगा तब तक मैं घर नहीं जा सकाता मगर ऐसा आज तक नहीं हुआ है कि मेरा सारा सामान एक दिन में बिक गया हो।
मैं - मैंने कहा अब्बा एक काम करो आप अपना सारा सामान तोल दो मैं आज आपका सारा सामान खरीदता हूं मगर मेरी एक शर्त है।
बुजुर्ग - (थोड़ा मुस्कुराते हुए) क्या शर्त है बेटा।
मैं - आपको मेरे साथ डाॅक्टर के चलना होगा मैं आपको दवा दिलाकर अपके घर छोडूगा और आज आपके घर ही इफतारी करूगां।
बुजुर्ग - थोड़ा हस कर बोले - ठीक है।
मै- मैंने सारा सामाान लिया और उनकी बोरी को उठाया और उनको डाॅक्टर के पास लेजाकर दवा दिलवाई और फिर उनके घर की ओर रवाना होने लगे।
घर पहुंचा तो एक बहुत बुढ़ी अम्मा अन्दर से ही कहने लगी आज फिर आप जल्दी आ गये इफतार और फिर सहरी कहा से आऐगी यह सुनकर मेरे आंखों से आंसू आने लगे और मैं अपने आपको बहुत ही लाचार और कमजोर महसूस कर रहा था। फिर भी मैं हिम्मत करके बोला अम्मा आज अब्बा का सामारा सामान बिक गया अब आपको फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
मैं अपने साथ कुछ इफतारी का सामान भी ले गया था वो मैंने अम्मा को दिया मगर वो अम्मा इफतारी का सामान लेते हुए थोड़ा झिझक रहीं थी तो मैने कहा मैं आज यहीं आप लोगों के साथ इफतार करूंगा फिर भी अम्मा ने अब्बा की तरफ देखा तो अब्बा ने थोडी से गर्दन हां के इशारे में हिलाई फिर अम्मा ने थोड़ा मुस्कुराते हुए मुझसे इफतारी का सामान लिया और अब्बा को मैंने एक चारपाई बिछाकर लिटाया और फिर हमने साथ में इफतारी की। वहां से लौटते वक्त मैरे मन में बहुत से सवाल थे मगर मैं कर भी क्या सकता था।
फिर भी मैंने कुछ पैसे और देने की सोची और जैसे ही मैने कुछ पैसे अब्बा के हाथ पर रखे उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा हम आपके जज्बात की कदर करते हैं मगर मेरी खुदद्ारी इसकी इजाजत नहीं देती हम ये पेसे नहीं रख सकते। मैंने बहुत कहा मगर उन्होने पैसे नहीं लिये।
इतने में मुझे किसी ने झांझोडा और खुर्शीद खुर्शीद की आवाज आई जैसे मेरी आंख खुली मैं अपने घर की चारपाई पे सोया हुआ था और मेरे वालिद मोहतरम मुझे फजर की नमाज के लिये जगा रहे थे। मैं जैसे बहुत गहरी नींद से जागा। मगर इस ख्वाब ने मेरी जिन्दगी का एक नया सबक सिखाया।
अब मैं हर कोशिश यह करता हूं की अपनी जरूरत का हर सामान इस तरह के बुजुर्गों से ही खरीदूं क्योंकि ये लोग अपने बिजनेस को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिये मेहनत नहीं करते बल्कि 2 वक्त की रोटी की जदद्ोजहाद में मेहनत करते है।
मैं आप सब से भी यहीं गुजारीश करता हूं कि बड़े बड़े शोरूमों की बजाये इस तरह के बुजुर्ग लोगों से जरूर खरीदारी करें।
अगर इस छोटी सी कहानी को लिखने में कोई गलती हो गई हो तो मैं खुशीद अ0 सैफी आपसे मांफी का तलबगार हूं।

शुक्रिया...

लेखक - Khursheed A. Saifi